Last modified on 1 अक्टूबर 2018, at 10:57

ज़माना ख़ौफ़ज़दा है हमसे / रवि कुमार

ज़माना परेशान है
कि हमारे पुरसुकून चहरों पर
परेशानी की कोई शिकन नहीं
कि हम हमेशा ही
मुस्कुराए और चहकते रहे
कि हमने गुनगुनाए अक्सर
उल्लास भरे गीत
ज़माने को जुकाम हो गया है
कि हम कमर में हाथ डाले
मूसलाधार बारिश में भीगे थे घण्टों
कि हमने जनवरी के महिने में
आइसक्रीम जमाई
और मुंजमिद झील पर लेटकर
उसे एक दूसरे को खिलाया
ज़माने को हैजा हो गया है
कि हम तपती दोपहर में
लू के थपेड़ों के संग निकल गये थे
रेगिस्तान की तफ़रीह पर
कि हमने बाज़ार में चटखारे लेते हुए
खुली रखी चाट खाई
कि हमारे घर की तमाम मक्खियों ने
हमारा साथ छोड दिया है
क्योंकि उन्हें गंदगी पसन्द थी
ज़माने को घुटन महसूस हो रही है
कि हमने खाली वक्त में
छत की शिगाफ़ों में सीमेंट लगाया
कि हमने अपना आंगन बुहारा
पौधों को पानी दिया
कि हमने लुकाछिपी का खेल खेला
अलाव जलाकर बदन गर्माया
कि हम हाथों मे हाथ लिए
यूं ही टहलते रहे देर रात तक
ज़माना हमसे ख़फ़ा है
कि हमने अपने घर की दीवारों पर
रंगीन चित्रकारी की
कि हमने रात्रि के तीसरे पहर
बांसुरी पर एक सुरीली तान छेडी
कि हम सुबह देर तक
एक दूसरे से लिपटे सोए रहे
ज़माना ख़ौफ़ज़दा है हमसे
कि हमारे घर का दरवाज़ा
हमेशा खुला रहता है
कि हमारे पास कोई हथियार नहीं है
कि हमारे चूल्हे में
हमेशा आंच रहती है
कि हमारे ख़िलाफ़
उनकी हर साज़िश नाकाम हुई है
ज़माना परेशान है, ख़फ़ा है हमसे
ज़माने की तबियत नासाज़ है
ख़ौफ़ज़दा है हमसे
बिल आख़िर
ज़माना ख़ुदकुशी कर लेगा एक दिन