भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़माना तो जमाना ही रहेगा / हरेराम समीप

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़माना तो जमाना ही रहेगा
तुम्हारे दिल की चीखें क्यों सुनेगा

ये उपवन काटकर बस्ती बनी है
यहाँ दुःस्वप्न का जंगल उगेगा

तू ज़ालिम के यहाँ पर है मुलाज़िम
ये सोना रोज पीतल पर चढे.गा

अगर पढ़ने दिया उसको, तो तय है
ये 'छोटू’ काम करना छोड़ देगा

न पूछो मुफलिसी का हाल उससे
फफककर वो अभी रोने लगेगा

उड़ोगे पूरी ताकत से तो तय है
तुम्हें ये आसमाँ छोटा पड़ेगा