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ज़माने के चलन पे हद से गिर जाने की बातें क्यों / मनोज मनु
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ज़माने के चलन पे हद से गिर जाने की बातें क्यों
ज़बान-ए-मर्द से आख़िर मुकर जाने की बातें क्यों
अगर अहसास मर जाएँ तो बाक़ी कुछ नहीं रहता
जियो ज़िंदादिली से घुट के मर जाने की बातें क्यों
तुम्हारे ख़ून में शामिल है चट्टानें कुचल देना
ज़रा-सी ठेस पे यूँ ही बिखर जाने की बातें क्यों
जुदाई के तसव्वुर से मेरी रूह काँप जाती है
ये माना रुक नहीं सकते मगर जाने की बातें क्यों
‘मनु’ शींरी ज़बां में गुफ़्तगू करिए ज़माने से
किसी के दिल में नश्तर-सी उतर जाने की बातें क्यों