ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर।
अजब क्या सर पै आये पाँव की ख़ाक आसमाँ होकर॥
उठो ऐ सोनेवालो! सर पै धूप आई क़यामत की।
कहीं यह दिन न ढल जाये नसीबे-दुश्मनाँ होकर॥
अरे ओ जलनेवाले! काश जलना ही तुझे आता।
यह जलना कोई जलना है कि रह जाये धुआँ होकर॥