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ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र

ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं !

यहाँ चिता पर हम लेटे
हैं धुआँ हो रहे
और देह के कष्ट हमारे
सभी खो रहे

पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं !

मंत्र रचे थे
हमने धरती के सुहाग के
जो साँसों में दहती हर पल
उसी आग के

उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं !

अंतिम गीत हमारा यह
रह गया अधूरा
हाँ, कल लौटेंगे हम
इसको करने पूरा

काल द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं !