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ज़र्रे-ज़र्रे के होठों पे वा देखकर / सूरज राय 'सूरज'

ज़र्रे-ज़र्रे के होठों पर वा देखकर।
मौत चौंकेगी मेरा नवा देखकर॥

ज़ह्र बहता है अब यूं लहू में मेंरे
जान जाती है सचमुच दवा देखकर॥

मिन्नतें, चापलूसी, दिखावा, सना
लोग करते हैं ख़ुद से सवा देखकर॥

सिर्फ़ महसूस करते हैं गांवों में हम
लोग शहरों से आए हवा देखकर॥

मुद्दतों बाद इक मुठ्ठी आटा मिला
आज रो देगा चूल्हा तवा देखकर॥

क़र्ज़ है तुझपे "सूरज" मेरी इक सहर
आ भी जाना कभी पल रवा देखकर॥