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ज़हन खे पंहिंजे कितकिताए ॾिसु / एम. कमल

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ज़हन खे पंहिंजे कितकिताए ॾिसु।
लुत्फु़ पंहिंजियुनि कमियुनि मां पाए ॾिसु॥

ज़िल्लतुनि सां तो किअं निबाहियो आ-
ठाह जा चौपड़ा वराए ॾिसु॥

दागु़ कोन्हे को, तुंहिंजे चेहरे ते।
आरसी तूं बत्ती विसाए ॾिसु॥

शहर में कंहिं खे को सुञाणे नथो।
पंहिंजो ॾसु पाड़े में पुछाए ॾिसु॥

कन भितियुनि खे त वातु आ दर खे!
घर में कुछु भुणिकी, आज़माए त ॾिसु॥

ज़ख़मु याद आ, कुड़ी-कुड़ी मिड़न्दो।
भली ॿिया नुस्ख़ा, आज़माए ॾिसु॥

ॻिही वेंदइ कमल, हयाति जो घुघु।
लाट फ़न फ़िक्र जी, विसाए त ॾिसु!