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ज़िंदगी भर जिन्हों ने देखे ख़्वाब / आबिद मुनावरी

ज़िंदगी भर जिन्हों ने देखे ख़्वाब
उन को बख़्शे गए हैं फिर से ख़्वाब

दिन अंधेरा दिखाई देता है
रात देखे थे जगमगाते ख़्वाब

उस ने ऐसे भुला दिया है मुझे
याद रहते नहीं हैं जैसे ख़्वाब

रात की बख़्शिशें तो थीं मुझ पर
रोज़-ए-रौशन ने भी दिखाए ख़्वाब

जिन की ता'बीर ही नहीं कोई
मैं ने देखे हैं अक्सर ऐसे ख़्वाब

दिल का हर ज़ख़्म हो गया ताज़ा
आ गए याद भूले-बिसरे ख़्वाब

इश्क़ की ये अलामतें तो नहीं
दिल है बेचैन आँख है बे-ख़्वाब

मश्ग़ला है मिरा ये ऐ 'आबिद'
देखना नित-नए सुनहरे ख़्वाब