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ज़िंदगी मिलने के मकसद को निभाना होगा / पूजा श्रीवास्तव

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ज़िंदगी मिलने के मकसद को निभाना होगा
आँखें नम लेके भी रोते को हँसाना होगा
 
बनके सूरज मेरे अरमान जलाने वाले
एक दिन खुद को तुझे मुझमें बुझाना होगा

अपने हाथों से सनम एक लिफाफा मेरा
तुझको बहती हुई आँखों से जलाना होगा

वक़्ते रुख़सत ही सही वक़्त मेरा होगा मगर
जब न सुनना मेरा और तेरा सुनाना होगा

इश्क़ फूलों का सफ़र है ये समझने वालों
लौट जाओ यहाँ काँटों से निभाना होगा