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"ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है / जंगवीर सिंंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है | ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है | ||
उम्र भी उम्र भर में गुज़री है | उम्र भी उम्र भर में गुज़री है | ||
− | ग़मज़दा तारों का | + | चाँद की बेवफ़ाई के सदके |
− | + | चाँदनी दोपहर में गुज़री है | |
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+ | ग़मज़दा तारों का हिज़ाब ओढ़े | ||
+ | रात भी रात भर में गुज़री है | ||
− | इक कसीदा ग़ज़ल प रुख | + | इक कसीदा ग़ज़ल प रुख करूँ तो |
हर ख़ुशी चश्म-ए-तर में गुज़री है | हर ख़ुशी चश्म-ए-तर में गुज़री है | ||
− | + | हसरत-ए-रब्त दिल में ले करके | |
− | + | शाम वादों के घर में गुज़री है | |
एक जुगनू सहर दिखाएगा | एक जुगनू सहर दिखाएगा | ||
शब इसी मोतबर में गुज़री है | शब इसी मोतबर में गुज़री है | ||
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+ | कुछ नए मौसमों की पहली रात | ||
+ | ओस के इक सिफ़र में गुज़री है | ||
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+ | इक ख़ुशी मेरे ज़हन से होकर | ||
+ | आसुओं के पहर में गुज़री है ! | ||
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17:27, 25 अक्टूबर 2018 का अवतरण
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ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है
उम्र भी उम्र भर में गुज़री है
चाँद की बेवफ़ाई के सदके
चाँदनी दोपहर में गुज़री है
ग़मज़दा तारों का हिज़ाब ओढ़े
रात भी रात भर में गुज़री है
इक कसीदा ग़ज़ल प रुख करूँ तो
हर ख़ुशी चश्म-ए-तर में गुज़री है
हसरत-ए-रब्त दिल में ले करके
शाम वादों के घर में गुज़री है
एक जुगनू सहर दिखाएगा
शब इसी मोतबर में गुज़री है
कुछ नए मौसमों की पहली रात
ओस के इक सिफ़र में गुज़री है
इक ख़ुशी मेरे ज़हन से होकर
आसुओं के पहर में गुज़री है !