भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है / जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKPageNavigation
 
|सारणी=
 
|आगे=
 
|पीछे=
 
}}
 
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna

12:23, 28 अगस्त 2020 के समय का अवतरण


ज़िन्दगी इक सफ़र में गुज़री है
उम्र भी उम्र भर में गुज़री है

चाँद की बेवफ़ाई के सदके
चाँदनी दोपहर में गुज़री है

ग़मज़दा तारों का हिज़ा‌ब ओढ़े
रात भी रात भर में गुज़री है

इक क़सीदा ग़ज़ल प रुख करूँ तो
हर ख़ुशी चश्म-ए-तर में गुज़री है

हसरत-ए-रब्त दिल में ले करके
शाम वादों के घर में गुज़री है

एक जुगनू सहर दिखाएगा
शब इसी मोतबर में गुज़री है

कुछ नए मौसमों की पहली रात
ओस के इक सिफ़र में गुज़री है

इक ख़ुशी मेरे ज़हन से होकर
आसुओं के पहर में गुज़री है !