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ज़िन्दगी का फ़साना / अशेष श्रीवास्तव

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ज़िन्दगी का फ़साना सिवा चाहतों के
कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं
चाहिये ये हमें, ये मिला ही नहीं
ज़िन्दगी क्यों मिली ये पता ही नहीं...
अपने कौन हैं पराये कौन हैं
वक्त की बात है और कुछ भी नहीं
वक्त पड़ने पर जो साथ छोड़ें न जो
बस वही अपने हैं और कुछ भी नहीं...
चाहिये ना मुझे दौलतें शोहरतें
आप बस पास हों और कुछ भी नहीं
मुश्किले दौर से भी गुज़र जायेंगे
आप जो साथ हों और कुछ भी नहीं...
क्यों शिकायत करें क्यों दुखी ख़ुद से हों
खेल मालिक का है और कुछ भी नहीं
साथ लाये थे क्या साथ जायेगा क्या
कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं...
चाहतें ना मिटीं ज़िंदगी मिट चली
पाया बहुत पर सुकूँ कुछ नहीं
चाह अब है यही चाहतें सब मिटें
चाह तेरी रहे और कुछ भी नहीं...