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ज़िन्दगी फिर कोई पाते तो और क्या करते! / गुलाब खंडेलवाल


ज़िन्दगी फिर कोई पाते तो और क्या करते!
आपसे दिल न लगाते तो और क्या करते!

आपके प्यार की पहचान माँगते थे लोग
हम अपना सर न कटाते तो और क्या करते!

दिल जो टूटा तो हरेक शहर में ख़ुशबू फैली
फूल भी हम जो खिलाते तो और क्या करते!

उनकी नज़रों से छिपाकर उन्हीं से मिलना था
हम ग़ज़ल बनके न आते तो और क्या करते!

पंखड़ी दिल की कोई चूमने आया था गुलाब!
आप नज़रें न झुकाते तो और क्या करते!