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"ज़ीस्त उम्मीद के साये में ही पल जाए फिर .../ श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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काश बदली से कभी धूप निकलती रहती
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सर से पानी जो कभी अपने निकल जाए फिर
ज़ीस्त<ref>ज़िंदगी</ref> उम्मीद के साए में ही पलती रहती
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बुज़दिली अपनी भी हिम्मत में बदल जाए फिर
  
एक पल को भी अगर तेरा सहारा मिलता
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धूप  आने के कुछ आसार तो दिखलाई  पड़े
ज़िंदगी ठोकरें खा के भी संभलती रहती
+
ज़ीस्त<ref>ज़िंदगी</ref>उम्मीद के साये में ही पल जाए फिर
  
फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाते दिन
+
पूछ ले हाल हमारा कभी वो भूले से
और हर रात तेरी याद मचलती रहती
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ज़िंदगी ठोकरें खाती है सम्हल जाए फिर
  
पाँव फैलाए अँधेरा है घरों में, फिर भी
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फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में मेरा दिन गुज़रे
शम्म: हालाँकि हर इक बाम<ref>छज्जा</ref> पे जलती रहती
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और हर रात तेरी याद में ढल जाए  फिर
 
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शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
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वो कहे गर तो खिलौनों  की तरह बन जाऊँ
जब कि नदिया की लहर खूब उछलती रहती
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कुछ नहीं और,  तबीयत ही बहल जाए फिर
 
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तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था
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तुझसे “श्रद्धा” ये तबीयत ही बहलती रहती
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01:32, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण

सर से पानी जो कभी अपने निकल जाए फिर
बुज़दिली अपनी भी हिम्मत में बदल जाए फिर

धूप आने के कुछ आसार तो दिखलाई पड़े
ज़ीस्त<ref>ज़िंदगी</ref>उम्मीद के साये में ही पल जाए फिर

पूछ ले हाल हमारा कभी वो भूले से
ज़िंदगी ठोकरें खाती है सम्हल जाए फिर

फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में मेरा दिन गुज़रे
और हर रात तेरी याद में ढल जाए फिर
   
वो कहे गर तो खिलौनों की तरह बन जाऊँ
कुछ नहीं और, तबीयत ही बहल जाए फिर

शब्दार्थ
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