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ज़ुबाँ को बन्द करें या मुझे असीर करें / बृज नारायण चकबस्त

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ज़ुबाँ को बन्द करें या मुझे असीर करें
मेरे ख़याल को बेड़ी पिन्हा नहीं सकते ।

ये कैसी बज़्म<ref>महफ़िल</ref> है और कैसे इसके साक़ी<ref>शराब पिलाने वाला</ref> हैं
शराब हाथ में है और पिला नहीं सकते ।

ये बेकसी भी अजब बेकसी है दुनिया में
कोई सताए हमें हम सता नहीं सकते ।

कशिश<ref>आकर्षण की शक्ति</ref> वफ़ा की उन्हें खींच लाई आख़िरकार
ये था रक़ीब<ref>शत्रु</ref> को दावा वे आ नहीं सकते ।

जो तू कहे तो शिकायत का ज़िक्र कम कर दें
मगर यक़ीं<ref>विश्वास</ref> तेरे वादों पै ला नहीं सकते ।

चिराग़ क़ौम का रोशन है अर्श पर दिल के
इसे हवा के फ़रिश्ते बुझा नहीं सकते ।

शब्दार्थ
<references/>