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ज़ुबां पर बात आ जाए तो हम रोका नहीं करते / देवेश दीक्षित 'देव'

ज़ुबां पर बात आ जाए तो हम रोका नहीं करते
बनाकर बोझ सीने में उसे रक्खा नहीं करते

गले मिलकर सुना है लोग गरदन काट लेते हैं
यहाँ तो दुश्मनों के साथ भी धोखा नहीं करते

हवा का देखकर रुख़ जो लचक जाते सलीके से
ज़रा सी आंधियों में वो शजर टूटा नहीं करते

मिरी हसरत मिरी चाहत निगाहों की बयानी पढ़
लबों से राज़ दिल के हम कभी खोला नहीं करते

हमेशा काम आओ 'देव' मज़लूमों ग़रीबों के
कि दरिया नेकियों के उम्र-भर सूखा नहीं करते