भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ुर्म / मनोहर बाथम

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:09, 17 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कामरेड हमीद के लिए

ईद के दिन हमारी चौकी पर
पीछे के दरवाज़े से
उसने सिवईयाँ भेजीं चुपचाप
किसी को न बताने की शर्त थी

मेरी दीपावली की मिठाई भी शायद
इस तरह से जाती

वो हो गया रुख़सत दुनिया से
मेरे साथ ईद मनाने के ज़ुर्म में