Last modified on 21 नवम्बर 2013, at 07:28

ज़ौक़-ए-अमल के सामने दूरी सिमट गई / अज़ीज़ अहमद खाँ शफ़क़

ज़ौक़-ए-अमल के सामने दूरी सिमट गई
दरवाज़ा हम ने खोला तो दीवार हट गई

बेटे को अपने देख के इक बाप ने कहा
तुम हो गए जवान मगर उम्र घट गई

पहले तो ख़ुद को देख के हैरत-ज़दा हुई
चिड़िया फिर आईने से लपक कर चिमट गई

पतवार भी उठाने की मोहलत न मिल सकी
ऐसी चली हवाएँ कि कश्ती उलट गई

नाराज़ हो गया है ख़ुदा सब से ऐ ‘शफ़क’
दुनिया तमाम प्यार के रिश्ते से कट गई