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ज़्यादा सहा कहाँ है थोड़ा यूँ भी निकले दौर बहुत / महेश कटारे सुगम
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ज़्यादा सहा कहा है थोड़ा यूँ भी निकले दौर बहुत ।
अब कुछ कुछ ऐसा लगता है कहने को है और बहुत ।।
अपने हिस्से की थाली थी पकवानों से भरी हुई,
पर धीरे से छीन ले गया कोई हमारे कौर बहुत ।
आँधी आमों की फ़सलों की दुश्मन क्यों बन जाती है,
कितने आम बचेंगे साबुत आया तो है बौर बहुत ।
ख़्वाब सजाए थे शादी के सब के सब झूठे निकले,
अच्छे घर वर की चाहत में पूजी है गनगौर बहुत ।
तुम्हें मुबारक महल अटारी सुविधाओं से भरी हुई,
सुगम ठीक है अपनी ख़ातिर सीलन वाली पौर बहुत ।।
27-01-2015