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"जां सुलगती है--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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19:29, 17 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
रात भर शमा से गुल हटाए रखिए
वहमे-सुबह का ख़याल बनाए रखिए
जाँ सुलगती है लफ़्ज़ों की कामयाबी पर
लफ्ज़ हवाओं की तरह बहाए रखिए
ख़ुदकुशी से पहले आग बार-बार परखिए
हर धुएँ का सैलाब आग नहीं, वहम भगाए रखिए
यार, पैसे ना उड़ा इन फ़िज़ूल साँसों पर
वात महंगे हुए, आह भी थामे रखिए