Last modified on 2 जून 2014, at 01:14

जाउँ कहाँ तजि चरन तुम / भजन

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
काको नाम पतित पावन जग, केहि अति दीन पियारे॥१॥

कौने देव बराइ बिरद-हित, हठि-हठि अधम उधारे।
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे ॥२॥

देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज, सब, माया बिबस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा अपनपौ हारे॥३॥