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जाकौं प्रभु अपनो करि / हनुमानप्रसाद पोद्दार

जाकौं प्रभु अपनो करि लीन्हों।
जाकौ चरन-सरन दै सबसौं सहज अभय करि दीन्हों॥
जाकौ हृदय लगाय कह्यौ-’तू सबै भाँति जन मेरो’।
सो क्यों होय सोच-चिंता बस प्रभु चरननि को चेरो॥
जग के दुःख दोष नहिं कबहूँ, ताकौं भेंटन आवैं।
दूरहि तैं तेहि देखि सुरच्छित, दौरि सबै दुरि जावैं॥
सुर मुनि सिद्ध सुयोगी ताकौ भाग्य सराहत थाके।
अखिल विस्वपति प्रभु सुख मानत, गले लगत अति जाके॥