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जागरण / मिथिलेश कुमार राय

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मैं रात भर जगा रहा
और बारिश की बून्दों का बजना सुनता रहा ।
मैं रात भर इसके लिए नहीं जगा
कि मुझे नीन्द नहीं आई ।
नीन्द आती इससे पहले
बारिश आ गई और बून्दों ने बजना शुरू कर दिया,
फिर नीन्द कैसे आती ।

मुझे लगता है कि मेरी नीन्द
बारिश में भींगकर वापस लौट गई होगी,
या नहीं तो वो मेरी नीन्द थी
इसलिए कहीं ठहर कर संगीत में मग्न हो, गई होगी
और मुझ तक आना भूल गई होगी ।

कल रात
रात भर बारिश होती रही ।
(अच्छा, इसे मैं ऐसे लिख देता हूँ कि)
कल रात, रात भर बून्दों का संगीत बजता रहा ।
कल रात बहुत सारी आँखों से नीन्द उड़ी रही ।

चूँकि, मेरा घर टीन की एक छपरी है ।
टीन की छपरी पर बारिश की बून्दों का बजना अच्छा सधता है ।
आप कभी टीन की छपरी में सोएँगे तो आपको पता लगेगा
कि वहाँ से आवाज़ कितनी साफ़ सुनाई देती है ।
एक बार जब मैं सीमेण्ट की छत वाले घर में सोया था,
तब भी रात भर बारिश हुई थी ।
लेकिन इस बात का पता गीली मिट्टी देखकर भोर में लगा ।
मुझे तो अपने बचपन की भी याद है
कि फूस के घर पर गिरती बून्दें
धरती पर गिरकर जब भी धुन बजाती थीं,
तभी पता चल जाता था ।

टीन के घर से
बारिश की बून्दों का बजना सुनने का यह फ़ायदा है
कि वहाँ से आवाज़ बड़ी साफ़ आती है ।
एक फ़ायदा यह भी है
कि इस घर को तोड़ना आसान है,
और टूटे घर को फिर से बनाना भी ।

जब कभी बारिश की बून्दें
कई-कई दिनों तक संगीत बजाती ही रहती हैं,
तब नदी जोश से भर जाती है,
फिर उसमें हिलोरें उठने लगती हैं,
तब लगता है कि बारिश की बून्दें
नदी को उन्मत करने केलिए ही बज रही थीं ।

जब भी कभी ऐसा होता है,
घर दहलने लग जाता है ।

हम इसलिए टीन का घर बनाते हैं
और बून्दों के संगीत को साफ़-साफ़ सुनने के लिए
रात-रात भर जगे रहते हैं ।