जागो नहीं जाग जल भारी।
बहुतक दंद-फंद तुमें सूझे काल कर्म की राह संभारी।
अब कह जाब राव किहि के ढिंग बिन दीपक नहि मिटे अंधयारी।
तिर नहीं रहो बहौ भौसागर हेरे नहि हर राम निहारी।
बंधन परो रहो अपने विधि भेद बिना भम्र सके न हारी।
जुड़ीराम शब्द बिन चीन्हें बे सतसंग न जीव सुखारी।