भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागो / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:10, 8 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार मुकुल |संग्रह=​समुद्र के आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागो युवा उठो ऐ दोस्‍तो
बहुत सोए अब नींद तोड़ दो
जंग लगी है उसे झकझोर दो
बंधनों को ऐ तुम बिखेर दो

समाज में जो लगी आग है
मानवों के मुख पे दाग है
विषधर जो छोड़ते झाग हैं
हंसों के वेष में काग हैं

इन सब की तुम पोल खोल दो
डरो नहीं जेहाद बोल दो।