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जागौ सबे किसान / ध्रुव कुमार वर्मा

जागौ सोनू, जागौ मंगलू,
जागौ सबे किसान।
तूहर बिगन दुनियाँ भर के,
संगी मरे बिहान।

तै तपसी अस घाम पियास ल,
सहिके जब मुसकाए।
खेतर खार में अन्न के दाना,
मोती अस छरियाए।
अपन पेट ला पोचवा राखे,
अपन देह ला उघरा।
ऊमर भर तै छाए संगी,
दूसर मन के कुंदरा।
टूटहा-फूटहा तोर घर कुरिया
धुर्रा उड़त गाँव।
कभ्भू परथे बसदेवा के
डेरा आमा के छाँव।

इहें तो रोवत हाँसत हे
हमर हिन्दूस्थान॥1॥

ओ का काम के जिंनगी एगा,
खाए न अउ न कमाएन।
अड़हा रहेन नई उमचाएन,
चार अक्षर रामायण।
सिधवा जानके जेने पाथे
तेने तुहला ठग थे।

जइसे सुधरा घोड़ा ऊपर
बिन लगाम के चघथे।
धरौ कुदारी, कौड़ो माटी
मन मां पढ़ लौ गीता।
सोन के मिरगा ल देखके संगी
मत ललचावय सीता।

घर हा लीये पोते राहय,
खेत मां उपजय धान॥2॥

गांव गांव मां सुनता होके
टोरौ गांव के झगरा।
थाना अऊर कछेरी मं होथे
संगी पांच के पंदरा।
गांधी बबा सपना देखय
होही राम के राज।
तूही गांव के रहवइय्या मन,
राखव ओकर लाज।

हमरे भीतर भेद डरइया
हे तेला-पहिचानव।
अपने सुनता के रद्दा मं
धरके ओला लानव।

चारी चुगली ला सुनव झन
तोपे रहव कान॥3॥