भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाग जईहे अइया / सुभाष चंद "रसिया"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाग जईहे अइया जुल्म होई जाई।
बलम जी कुण्डी के धीरे से बजाई॥

सन-सन चले रातभर पुरवइया।
निदिया सतावे हमके मोरी दैया।
लगहि बाड़ी छोटकी ननद कैसे आई॥
बलम जी कुण्डी॥

नीमिया कि गछिया पर बोले चिरैया।
चमचम चमकेले अंगनवा तरैया।
अइसे ना नखरा सजनवा दिखाई॥
बलम जी कुण्डी धीरे से बजाई॥

बड़का भसुर जी सुतल बाटे दुबरा।
फुकी-फुकी तापी जाकेअब पूवरा।
बडकी मड़ईया में धइल बा रजाई॥
बलम जी कुण्डी धीरे से बजाई॥