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जाड़ा गिरते भोरे घामा बइठल खोंखेली काकी / रामरक्षा मिश्र विमल
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जाड़ा गिरते भोरे घामा बइठल खोंखेली काकी
बेटा बेटी खातिर तिलवा मेथी फोरेली काकी
लाल सजाव दही चिउरा पर गुर के भेली खूब जमे
खिचड़ी का दिन पंडीजी के थाल परोसेली काकी
बरिसन से बड़का ना लउकल ससुरारी में बइठल बा
सुसुकत रोजे याद करेली अँखिया पोंछेली काकी
बेमतलब के खरचा पर अनसाली, भितरे कुहुँकेली
अनदीना का डर से पइसा पइसा जोरेली काकी
नवकी कोबी के तरकारी जहिया चटक बनावेली
कहँवा गइल,विमलवा’ भीतर बहरी खोजेली काकी