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जाड़े के मौसम में है नित भोर कुहासा / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

जाड़े के मौसम में है नित भोर कुहासा।
कैसे निकलूं घर से है घन घोर कुहासा।।

किसकी-किसकी बात करूं सब एक ही जैसा।
राज खजाने को घेरे बड़ जोर कुहासा।।

सबके आंखों पर देखो है काला चश्मा।
नोटों के बादल नीचे कमजोर कुहासा।।

मंहगाई की बात करो मत ये तो है हरजाई।
शासन सत्ता में देखो गठ जोर कुहासा।।

फिर से दस्तक देने वाला है वह मौसम।।
फिर आकर देगा मुझको झकझोर कुहासा।।

छोटे-छोटे बादल के टुकड़ों को देखो।
इस घर से उस घर करता घुड़ दौड़ कुहासा।।