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जाड़े को महसूस करूँ मैं ऎसे
देर से मिला
उपहार हो वह कोई जैसे
मुझे भला लगता शुरूआती
उसका ढुलमुल विस्तार
भला है वह पर डर लगता है
रूप भयानक उस पर फबता है
कौए भी घबराएँ बेहद
देख वनरहित क्षेत्र का आकार
ताकतवर है हिम
पर बेहद भुरभुरा
नीलापन उसका उभरा
उनींदी-सी नदियाँ सोई हैं
हिम का ढेर हुआ है ऊँचा
अर्ध गोलाकार
(रचनाकाल :29-30 दिसम्बर 1936)