Last modified on 21 जुलाई 2016, at 10:07

जाति-अभिमान / शब्द प्रकाश / धरनीदास

बामन वेद पुरान पढ़ै, रज पूतके मो सरिखा नहि कोई।
वैस विसाह बियाह के काजहिँ, शूद्र सदा कगदाव करोई॥
कहे धरनी नर मुक्ति के कारन, मारग पाव हजारमें कोई।
भूलि परे सब आपुहिँ आपको, पाप बढ़ो तन तापते खोई॥29॥