भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानता हूँ, फिर भी / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र के किनारे
बालू पर
अपनी अँगुली से लिखता हूँ
तुम्हारा नाम
बड़े जतन से

थोड़ी देर बाद
लहर आएगी
धुल जाएगा
ठीक है ।

पता है
फिर भी लिखता हूँ,
लिखता रहता हूँ बार-बार
तुम्हारा नाम —

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी