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जाना, लौटना और भटकना / कौशल किशोर

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एक कवि को
जाना हिन्दी की सबसे खौफनाक क्रिया लगे
फिर भी उसे जाना पड़े

दूसरे को लौटना असंगत नजर आये
इस कदर कि
वह अपने गाँव में खड़ा हो
इस दुस्वप्न के साथ कि
वह उखड़े वृछ की तरह
धरती पर पड़ा है

तीसरे को कदम-कदम पर
चौराहे मिले
सही दिशा लुप्त हो
और भटकना नियति बन जाय

जाना, लौटना और भटकना
त्रिभुज की सीधी-सरल रेखाएँ नहीं
जीवन की उबड़-खाबड़ क्रियाएँ हैं
हमारे समय का सबसे बड़ा सत्य है।