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जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे / शमशाद इलाही अंसारी

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जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे,
तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने बहुत रुलाया मुझे|

क़दम क़दम पर सिसकी और क़दम क़दम पर आहें,
खिजाँ की बात न पूछो सावन ने भी तड़पाया मुझे।

किस-किस को यूँ देखूँ किस-किस की नज़रों के तीर सहूँ,
ग़ैरों की तो बात न पूछो अपनो ही ने है सताया मुझे।

"शम्स" तपिश और बढ़ गई इन चंद बूंदों के बाद,
काले सियाह बादल ने भी बस यूँ ही बहलाया मुझे ।
रचनाकाल: १४.०८.२००३

रचनाकाल: 14.08.2003