Last modified on 3 अप्रैल 2010, at 13:11

जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता है/ सतपाल 'ख़याल'

 
जाने किस बात की अब तक वो सज़ा देता है
बात करता है कि बस जी ही जला देता है

बात होती है इशारों में जो रूठे है कभी
उसका हम पर यूँ बिगड़ना भी मजा देता है

बात करेने का सलीक़ा भी तो कुछ होता है
वो हरिक बात पे नशतर-सा चुभा देता है

हमने दी है जो कभी उसको खुशी की अर्ज़ी
पुर्जा-पुर्जा वो हवाओं में उड़ा देता है

है अँधेरों में चराग़ों सा वजूद उसका "ख़याल"
राह भटका हो कोई राह दिखा देता है