भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब<ref>क्लास</ref>में  
 
बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब<ref>क्लास</ref>में  
 
इल्म घटता है एहतराम के साथ
 
इल्म घटता है एहतराम के साथ
<poem>
+
</poem>
{{KKCatGhazal‎}}
+
{{KKMeaning}}

13:20, 26 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ

लफ़्ज़ होने लगे हैं सफबस्ता<ref>पन्तिबध</ref>
कौन उलझा ख़्याले-ख़ाम<ref>बेकार के ख्याल</ref>के साथ

काम की बात बस नहीं होती
रोज़ मिलते हैं एहतमाम के साथ

कितना टूटा हुआ हूं अन्दर से
फिर कमर झुक गयी सलाम के साथ

बज़्म<ref>गोस्ठी</ref>आगे बढ़े ये नामुमकिन
मुक्तदी<ref>पीछे नमाज़ पढ़ने वाले</ref>उठ गये इमाम<ref>नमाज़ पढ़ाने वाला</ref> के साथ

इन्क़लाब अब नहीं है थमने का
शाहज़ादे भी हैं गुलाम के साथ

बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब<ref>क्लास</ref>में
इल्म घटता है एहतराम के साथ

शब्दार्थ
<references/>