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जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ / 'अना' क़ासमी

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जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ
दिल भी टूटा पड़ा है जाम के साथ

लफ़्ज़ होने लगे हैं सफबस्ता<ref>पन्तिबध</ref>
कौन उलझा ख़्याले-ख़ाम<ref>बेकार के ख्याल</ref>के साथ

काम की बात बस नहीं होती
रोज़ मिलते हैं एहतमाम के साथ

कितना टूटा हुआ हूं अन्दर से
फिर कमर झुक गयी सलाम के साथ

बज़्म<ref>गोस्ठी</ref>आगे बढ़े ये नामुमकिन
मुक्तदी<ref>पीछे नमाज़ पढ़ने वाले</ref>उठ गये इमाम<ref>नमाज़ पढ़ाने वाला</ref> के साथ

इन्क़लाब अब नहीं है थमने का
शाहज़ादे भी हैं गुलाम के साथ

बेतकल्लुफ़ बहस हों मकतब<ref>क्लास</ref>में
इल्म घटता है एहतराम के साथ