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जाने वाले सिपाही से पूछो / मख़दूम मोहिउद्दीन

जाने वाले सिपाही से पूछो वो कहाँ जा रहा है

कौन दुखिया है जो गा रही है
भूखे बच्‍चों को बहला रही है
लाश जलने की बू आ रही है
ज़िंदगी है कि चिल्‍ला रही है

कितने सहमे हुए हैं नज़ारे
कैसे डर डर के चलते हैं तारे
क्‍या जवानी का खून हो रहा है
सुर्ख हैं आंचलों के किनारे

गिर रहा है सियाही का डेरा
हो रहा है मेरी जाँ सवेरा
ओ वतन छोड़कर जाने वाले
खुल गया इंक़लाबी फरेरा

मख़दूम की इसी नज़्म के आधार पर शैलेन्द्र ने फ़िल्म 'उसने कहा था' का गीत लिखा था।