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जिंदगानी का नया कोई हवाला चाहिए / कृष्ण 'कुमार' प्रजापति

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जिंदगानी का नया कोई हवाला चाहिए
धुँध बढ़ती जा रही है अब उजाला चाहिए

चाहिए हमको नहीं जो नफ़रतों का दे जुनूँ
जो मुहब्बत को बढ़ाए वो रिसाला चाहिए

शाख़ कविता की रहे इसके लिए तो दोस्तो
अब हमारे दरमियाँ फिर इक निराला चाहिए

हमसे छोटोंको है काफ़ी ताँत का इक ओढ़ना
जो बड़े हैं उनको कश्मीरी दुशाला चाहिए

भूख से जो बिलबिलाते हैं हमारे गाँव में
कब वो माँगे चाँद तारे बस निवाला चाहिए

फ़िक्र मेरी है कहाँ इन चैनलो को आजकल
बस इन्हें तो वक़्त का तड़का मसाला चाहिए

धर्म के बंधन में बंधना है नहीं तुमको “कुमार”
कोई मस्जिद या नहीं कोई शिवाला चाहिए