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जिगर हौसला कुछ परखकर भी देखे / सुदेश कुमार मेहर

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जिगर हौसला कुछ परखकर भी देखे
हदे इश्क़ से वो गुजरकर भी देखे

मैं कतरा सही पर ये हसरत कि मुझको,
बहुत हसरतों से समंदर भी देखे

उसे राब्ता है पर इतना नहीं है,
कि जाये तो मुझको पलटकर भी देखे

सुना है वो दरिया समझता है खुद को,
कुई कह दे उसको समंदर भी देखे

कुई राय कायम करे क्यों अभी से,
मेरे बारे वो राय कायम करे, पर,
ज़रा और पन्ने उलटकर भी देखे

उसे इश्क़ होना बहुत लाज़िमी है,
गली से मेरी जो गुजरकर भी देखे

मेरे हौसलों को परखने की खातिर,
कभी वो मेरे पर कुतरकर भी देखे