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जिजीविषा / कविता भट्ट

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समय के समक्ष जब
भिक्षुक हो जाएँ सभी विकल्प
जीवित रखना होता तब
अन्तःप्रज्ञा का ही दृढ़ संकल्प

लक्ष्य निष्ठुर हो जाते हैं जब
रातों में पहाड़ी पगडंडी -से
अपना लहू प्रपंच-मन में भर
जिजीविषा की दियासलाई से
चिमनी को जलाना होता तब
निचोड़ आँखों को स्वयं की
कामनाओं की बाती सुलगाना
जीवन-प्रश्नपत्र के अनिवार्य प्रश्न -सा;

किन्तु फिर भी विकल्पहीन
असफल ही कहलाता
जबकि वह वेश्या सा दिन-रात
अपना तन-मन सुलगाता...
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