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"जिजीविषा / सुकीर्ति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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खिड़की से झांकती
 
 
पीपल की नरम हरी पत्तियां
 
 
वायु के ताजे झोंके सी
 
 
बेचैनी छीन
 
 
स्नेह भरती हैं,
 
 
हवा-पानी धरती
 
 
और मनुष्य का प्यार
 
 
पनप जाती हैं शाखें
 
 
छत की फांक, काई भरी दीवार, पाइप
 
 
सम्बन्धों की गहराई माप
 
 
हरीतिमा खिलखिलाती है।
 
 
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झुकी कमर
 
झुकी कमर
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उसे सड़क पार जाना है।
 
उसे सड़क पार जाना है।
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09:35, 24 मार्च 2012 के समय का अवतरण


(1)

झुकी कमर

ठक ठक देहरी

उम्र नापती

इधर-उधर देखती

एक बस; दो बस अनेक बस

जाने देती रिक्शा ठेला भी

युवक ठिठकता है

वत्सला कांपती

थाम लेती है हाथ

उसे सड़क पार जाना है।