भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितना-जितना बहरा होता जाता हूँ / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 19 सितम्बर 2016 का अवतरण
जितना-जितना बहरा होता जाता हूँ
उतना-उतना गहरा होता जाता हूँ
देख-देख कर बच्चों की अठखेली को
मैं दरिया से सहरा होता जाता हूँ
माज़ी दिल पे बोझ बढ़ाए जाता है
सर से पा तक दुहरा होता जाता हूँ