भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जितने सूरज उतनी ही छायाएँ / अवधेश कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितने सूरज उतनी ही छायाएँ
मैं हूँ उन सब छायाओं का जोड़
सूरज के भीतर का हूँ अँधियारा
छोटे-छोटे अंधियारों का जोड़

नंगे पाँव चली आहट उन्माद की
पार जिसे करनी घाटी अवसाद की
एक द्वन्द्व का भँवर समय की कोख में
नाव जहाँ डूबी है यह सम्वाद की

जितने द्वन्द्व कि उतनी ही भाषाएँ
मैं हूँ उन सब भाषाओँ का जोड़
जितने सूरज उतनी ....