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"जिनके जलते हैं पुतले / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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वे डिनर कर रहे होंगे  
 
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कर्णभेदी जयघोषो  के बीच
 
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उन्हें माल्यार्पित किया जाएगा--
 
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गाहे-बगाहे
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क्योंकि उनके पुतलों का जलना  
 
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उनके खेत उतने,
 
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क्योंकि नहीं जला करते  
 
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जनसाधारण के पुतले
 
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हां, जलती रही हैं  
 
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जिनकी सन '४७ से  
 
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बढ गई दाहकता ऐसे  
 
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देश की आन पर
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यानी, मैच-फिक्सिंग, सट्टेबाजी
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में लेकर दिलचस्पी 
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टी.वी. फैमिली के गण्यमान्य बन
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फ्रेमों में सादर प्रतिष्ठित होते हैं,
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घोटालों की पीठ पर बमुश्किल अटके
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पुलों का शिलान्यास करते हैं,
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जलसे संचालित कर
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वाहियात भारतीयों से
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किनारा करते जाते हैं
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वे गांधिभक्त होते हैं
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पक्के हिंदुस्तानी देशभक्त होते हैं,
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बिलापरहेज वैश्विक व्यंजनों
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ख्यातिलब्ध कामनियों का
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छककर भोग करते हैं
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वे गली-गली ठांव-ठांव
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नजरों से नहीं उतरते हैं
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हां, जब कभी
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बरछीला हादसा संपन्न कर
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तेजाब जैसे दिल में उतर जाते हैं
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तब उनके कभी-कभार
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भूमिगत होने पर
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उनके विछोह न झेल सकने पर
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पुतले जला-जला
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उनकी उपस्थिति सादर
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हम दर्ज करते हैं.

11:52, 6 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


जिनके जलते हैं पुतले

जिनके जलते हैं पुतले
बीच चौराहे
राजमार्गों के सामने
या, गली-कूचों के
दाएं-बाएं,
वे छपते तो हैं
अखबारों में
और तब भी छपते रहेंगे
जब उजले कपडे पहन
वे डिनर कर रहे होंगे
किसी राष्ट्राध्यक्ष
या, अंडरर्वर्ल्ड के मुखियाओं संग,
या, जब सार्वजनिक रूप से
कर्णभेदी जयघोषो के बीच
उन्हें माल्यार्पित किया जाएगा--
गाहे-ब-गाहे
क्योंकि उनके पुतलों का जलना
और विजयमाल से अलंकृत होना
बहुत कम अंतर हैं दोनों में
उनके लिये

जितने अधिक जलते हैं
उनके पुतले,
मस्त लहालहाएंगे
महत्त्वाकांक्षाओं के
उनके खेत उतने,
क्योंकि नहीं जला करते
जनसाधारण के पुतले
हां, जलती रही हैं
उनकी कुछ चीजें
जिनकी सन '४७ से
बढ गई दाहकता ऐसे
कि उदराग्नि की तपिश से
बढता रहा है
धरती का बुखार,
इच्छाओं-कामनाओं के
अनखिले फूल
जलते रहे हैं धूं-धूं
और कभी-कभी
उनका शरीर भी
राजभवनों के रास्ते
जल उठता रहा है
मनोविनोद के वास्ते

इसलिए
आम आदमी के खिलाफ षडयंत्ररत
जिनके जलते हैं पुतले अनवरत
राहते नहीं हैं वे बस्तियों में,
उडकर उतरते हैं
विदेशी राज-हरमों में
जहां आयातित अप्सराओं संग वे
रास-अभिसार करते हैं,
अरबवासियों को खिलाते हैं
नाबालिग हिंदुस्तानी मुर्गियां,
भेजते हैं उंट-दौड में शिरकत करने
कमसिन दुधमुंहे चूजे वहां
जिन्हें ऊटो की दुमों से बांध
देसी मीडिया के हवाले कर दिया जाता है
या, संसद में
हास्य चर्चाओं के हाशिये में
डाल दिया जाता है

जिनके जलते हैं पुतले
जनसंकुल जगहों पर वे
इम्पोर्टेड बारूद-गन
बखूबी आजमाते हैं,
नशा-तस्करी की आवाजाही तय कर
राष्ट्र की सीमाओं से मुक्त कर
कुछ कर गुजरते हैं
देश की आन पर

यानी, मैच-फिक्सिंग, सट्टेबाजी
पाप-म्युजिक, कलाबाजी
में लेकर दिलचस्पी
टी.वी. फैमिली के गण्यमान्य बन
फ्रेमों में सादर प्रतिष्ठित होते हैं,
घोटालों की पीठ पर बमुश्किल अटके
पुलों का शिलान्यास करते हैं,
जलसे संचालित कर
वाहियात भारतीयों से
किनारा करते जाते हैं

चूंकि, उनके पुतले जलते हैं
वे गांधिभक्त होते हैं
पक्के हिंदुस्तानी देशभक्त होते हैं,
बिलापरहेज वैश्विक व्यंजनों
ख्यातिलब्ध कामनियों का
छककर भोग करते हैं
वे गली-गली ठांव-ठांव
नजरों से नहीं उतरते हैं
हां, जब कभी
बरछीला हादसा संपन्न कर
तेजाब जैसे दिल में उतर जाते हैं
तब उनके कभी-कभार
भूमिगत होने पर
उनके विछोह न झेल सकने पर
पुतले जला-जला
उनकी उपस्थिति सादर
हम दर्ज करते हैं.