भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिनके स्वर जय जयकारों में / राम लखारा ‘विपुल‘

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिनके स्वर जय जयकारों में शामिल होना ना चाहे
उनको यह आदेश है कि वे दूर देश में बस जाएं।

हमको पाने में गद्दी ने
मनका मनका फेरा होगा।
जो हमको राजा न पुकारे
निश्चित चोर लुटेरा होगा।

फिर भी इतनी छूट चलो दी जिसको साधू बनना हो
ताल तलैया छोड़ सभी वो सीधे तीर्थ बनारस जाएं।

शिष्टाचारों की होली में
नियमों के सरकंडे जलते।
ज्यादा भीड़ जुटे इस खातिर
शब्दों के हथकंडे चलते।

मनोरंजन के लिए उलझकर हम सिक्के छलकाते कि
राजसभाओं में जाए या मेले के सर्कस जाएं?

जो बच्चें-बच्चें कहकर यूं
मीठे बोल सुना जाए फिर।
कभी जरूरी नहीं कि उसको
मां का रूप चुना जाए फिर।

कुछ कुंडलियां ऐसी भी हैं जिनसे सूझबूझ बचना
वरना संभव वो नागिन बन अपने बच्चे डस जाएं।