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जिमि पवन-घाते अचल जल / सरहपा

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         जिमि पवन-घाते अचल जल,
         चलै तरंगित होइ ।
जिमि मूढ़ विलोम नेत्र को, एकै द्वीप दो भासै,
घरे बहुत दीपक जलै, तऊ जिमि नयनहीन को अंधार रहै,
नदी नाना तौ समुद्र है... सूर्य एक प्रकाशै,
जिमि जलधर समुद्र से पानी ले भूमि भरै।

पंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनूदित