जिसकी कहीं न कोई तुलना, जिसका कहीं न कुछ उपमेय।
सर्वरहित जो सदा सर्वमय सर्वातीत सर्वपर होय॥
जिसकी साथ चेतनता आनन्दरूपता अमित अनन्त।
निज स्वरूप-महिमामें स्थित जो, जिसमें सबका उद्भव-अन्त॥
वही अचिन्त्यानन्त अनिर्वचनीय दिव्य माधुर्याधार।
नाच रहा व्रज-धूल-धूसरित प्रेम-सुधा-रस-पारावार॥