Last modified on 30 जुलाई 2008, at 00:09

जिसने प्रतिबंधों का दर्द सहा होगा / विनय कुमार

जिसने प्रतिबंधों का दर्द सहा होगा।
उसके होठो पर सच का बिरहा होगा।

जैसे सबके पुरखो के घर ढहते हैं
वैसे ही राजा का महल ढहा होगा।

झरना फूट रहा होगा भीतर-भीतर
भीतर-भीतर पर्वत टूट रहा होगा।

शब्दों को चर-चर कर पगुराने वालो
फिर मालिक के हाथों में पगहा होगा।

कोलतार का पर्दा डाल गया कोई
पत्थर के ज़ख्मों से खून बहा होगा।

ज्ञानी ने ज्ञानी की जड़ काटी होगी
मूरख ने मूरख का हाथ गहा होगा।

जूते जो कहते पॉलिश के डिब्बे से
साँपों ने चंदन से वही कहा होगा।