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"जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने
 
जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने
 
 
दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने
 
दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने
 
 
उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर
 
उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर
      मेरी टाई टँगने से कतराती है।
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मेरी टाई टँगने से कतराती है।
  
 
माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी
 
माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी
 
 
एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटना
 
एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटना
 
 
यह अंतर ही संबंधों की गलियों में
 
यह अंतर ही संबंधों की गलियों में
 
 
ला देता है कोई निर्मम दुर्घटना
 
ला देता है कोई निर्मम दुर्घटना
 
  
 
जिन्हें रँगा जलते दीपक के काजल ने
 
जिन्हें रँगा जलते दीपक के काजल ने
 
 
बूढ़ी गागर से छलके गंगाजल ने
 
बूढ़ी गागर से छलके गंगाजल ने
 
 
उन दीवारों पर टँगने से पहले ही  
 
उन दीवारों पर टँगने से पहले ही  
  पत्नी के कर से साड़ी गिर जाती है।
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पत्नी के कर से साड़ी गिर जाती है।
  
 
जब से युग की चकाचौंध के कुहरे ने
 
जब से युग की चकाचौंध के कुहरे ने
 
 
छीनी है आँगन से नित्य दिया-बाती
 
छीनी है आँगन से नित्य दिया-बाती
 
 
तबसे लिपे आँगनों से, दीवारों से
 
तबसे लिपे आँगनों से, दीवारों से
 
 
बंद नाक को सोंधी गंध नहीं आती
 
बंद नाक को सोंधी गंध नहीं आती
 
  
 
जिसे चिना था घुटनों तक की दलदल ने
 
जिसे चिना था घुटनों तक की दलदल ने
 
 
सने-पुते-झीने ममता के आँचल ने
 
सने-पुते-झीने ममता के आँचल ने
 
 
पुस्तक के पन्नों में पिची हुई राखी
 
पुस्तक के पन्नों में पिची हुई राखी
    उस घर को घर कहने में शरमाती है।
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उस घर को घर कहने में शरमाती है।
  
 
साड़ी-टाई बदलें, या ये घर बदलें
 
साड़ी-टाई बदलें, या ये घर बदलें
 
 
प्रश्नचिह्न नित और बड़ा होता जाता
 
प्रश्नचिह्न नित और बड़ा होता जाता
 
 
कारण केवल यही, दिखावों से जुड़ हम
 
कारण केवल यही, दिखावों से जुड़ हम
 
 
तोड़ रहे अनुभूति, भावना से नाता
 
तोड़ रहे अनुभूति, भावना से नाता
 
  
 
जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने
 
जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने
 
 
खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने
 
खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने
 
 
उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर
 
उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर
  दरवाज़े  की ' कॉल वैल ' हँस जाती है।
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दरवाज़े  की 'कॉल बैल' हँस जाती है।
 
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</poem>
-- यह ग़ज़ल Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गई है।
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14:58, 1 जून 2017 के समय का अवतरण

जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने
दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने
उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर
मेरी टाई टँगने से कतराती है।

माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी
एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटना
यह अंतर ही संबंधों की गलियों में
ला देता है कोई निर्मम दुर्घटना

जिन्हें रँगा जलते दीपक के काजल ने
बूढ़ी गागर से छलके गंगाजल ने
उन दीवारों पर टँगने से पहले ही
पत्नी के कर से साड़ी गिर जाती है।

जब से युग की चकाचौंध के कुहरे ने
छीनी है आँगन से नित्य दिया-बाती
तबसे लिपे आँगनों से, दीवारों से
बंद नाक को सोंधी गंध नहीं आती

जिसे चिना था घुटनों तक की दलदल ने
सने-पुते-झीने ममता के आँचल ने
पुस्तक के पन्नों में पिची हुई राखी
उस घर को घर कहने में शरमाती है।

साड़ी-टाई बदलें, या ये घर बदलें
प्रश्नचिह्न नित और बड़ा होता जाता
कारण केवल यही, दिखावों से जुड़ हम
तोड़ रहे अनुभूति, भावना से नाता

जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने
खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने
उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर
दरवाज़े की 'कॉल बैल' हँस जाती है।